Saturday 5 November 2011

  जैसे बड़े होते-होते बचपन के खेलकूद छोड़ देते हो, वैसे ही संसार के खेलकूद छोड़कर आत्मानन्द का उपभोग करना चाहिये | जैसे अन्न जल का सेवन करते हो, वैसे ही आत्म-चिन्तन का निरन्तर सेवन करना चाहिये | भोजन ठीक से होता है तो तृप्ति की डकार आती है वैसे ही यथार्थ आत्मचिन्तन होते ही आत्मानुभव की डकार आयेगी, आत्मानन्द में मस्त होंगे | आत्मज्ञान के सिवा शांति का कोई उपाय नहीं |
Pujya asaram ji bapu :-

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