Tuesday 31 January 2012
Monday 30 January 2012
Sunday 29 January 2012
178_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
साधू संग संसार में, दुर्लभ मनुष्य शरीर ।
सत्संग सवित तत्व है, त्रिविध ताप की पीर।।|
मानव-देह मिलना दुर्लभ है और मिल भी जाय तो आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक ये तीन ताप मनुष्य को तपाते रहते है । किंतु मनुष्य-देह में भी पवित्रता हो, सच्चाई हो, शुद्धता हो और साधु-संग मिल जाय तो ये त्रिविध ताप मिट जाते हैं ।
Saturday 28 January 2012
Friday 27 January 2012
175_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
अरे ! विश्वनियंता तुम्हारे साथ है और तुम काँप रहे हो ? विश्वेश्वर सदा साथ है और तुम चिन्तित हो रहे तो बड़े शर्म की बात है। दुःख और चिन्ता में तो वे डूबें जिनके माई-बाप मर गये हों। तुम्हारे माई-बाप तो हृदय की हर धड़कन में तुम्हारे साथ हैं। फिर क्यों दुःखी होते हो ? क्यों चिन्तिन होते हो ? क्यों भयभीत होते हो ?
Pujya asharam ji bapu
Pujya asharam ji bapu
Thursday 26 January 2012
Wednesday 25 January 2012
170_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
दर्द का बार-बार चिन्तन मत करो, विक्षेप मत बढ़ाओ। विक्षेप बढ़े ऐसा न सोचो, विक्षेप मिटे ऐसा उपाय करो। विक्षेप मिटाने के लिए भगवान को प्यार करके 'हरि ॐ' तत् सत् और सब गपशप का मानसिक जप या स्मरण करो। ईश्वर को पाने के कई मार्ग हैं लेकिन जिसने ईश्वर को अथवा गुरूतत्त्व को प्रेम व समर्पण किया है, उसे बहुत कम फासला तय करना पड़ा है।
Pujya asharam ji bapu
Tuesday 24 January 2012
167_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
ऐ मन रूपी घोड़े ! तू और छलांग मार। ऐ नील गगन के घोड़े ! तू और उड़ान ले। आत्म-गगन के विशाल मैदान में विहार कर। खुले विचारों में मस्ती लूट। देह के पिंजरे में कब तक छटपटाता रहेगा ? कब तक विचारों की जाल में तड़पता रहेगा ? ओ आत्मपंछी ! तू और छलांग मार। और खुले आकाश में खोल अपने पंख। निकल अण्डे से बाहर। कब तक कोचले में पड़ा रहेगा ? फोड़ इस अण्डे को। तोड़ इस देहाध्यास को। हटा इस कल्पना को। नहीं हटती तो ॐ की गदा से चकनाचूर कर दे।
Pujya asharam ji bapu
165_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
चित्त की मधुरता से, बुद्धि की स्थिरता से सारे दुःख दूर हो जाते हैं। चित्त की प्रसन्नता से दुःख तो दूर होते ही हैं लेकिन भगवद-भक्ति और भगवान में भी मन लगता है। इसीलिए कपड़ा बिगड़ जाये तो ज्यादा चिन्ता नहीं, दाल बिगड़ जाये तो बहुत फिकर नहीं, रूपया बिगड़ जाये तो ज्यादा फिकर नहीं लेकिन अपना दिल मत बिगड़ने देना। क्योंकि इस दिल में दिलबर परमात्मा स्वयं विराजते हैं।
Pujya asharam ji bapu
Pujya asharam ji bapu
164_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
विचारवान पुरूष अपनी विचारशक्ति से विवेक-वैराग्य उत्पन्न करके वास्तव में जिसकी आवश्यकता है उसे पा लेगा। मूर्ख आदमी जिसकी आवश्यकता है उसे समझ नहीं पायेगा और जिसकी आवश्यकता नहीं है उसको आवश्यकता मानकर अपना जीवन खो देगा। उसे चिन्ता होती है कि रूपये नहीं होंगे तो कैसे चलेगा, गाड़ी नहीं होगी तो कैसे चलेगा, अमुक वस्तु नहीं होगी तो कैसे चलेगा।
Pujya asharam ji bapu
Pujya asharam ji bapu
Monday 23 January 2012
Sunday 22 January 2012
Saturday 21 January 2012
Friday 20 January 2012
Thursday 19 January 2012
Wednesday 18 January 2012
155_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
महापुरुष का आश्रय प्राप्त करने वाला मनुष्य सचमुच परम सदभागी है। सदगुरु की गोद में पूर्ण श्रद्धा से अपना अहं रूपी मस्तक रखकर निश्चिंत होकर विश्राम पाने वाले सत्शिष्य का लौकिक एवं आध्यात्मिक मार्ग तेजोमय हो जाता है। सदगुरु में परमात्मा का अनन्त सामर्थ्य होता है। उनके परम पावन देह को छूकर आने वाली वायु भी जीव के अनन्त जन्मों के पापों का निवारण करके क्षण मात्र में उसको आह्लादित कर सकती है तो उनके श्री चरणों में श्रद्धा-भक्ति से समर्पित होने वाले सत्शिष्य के कल्याण में क्या कमी रहेगी ?
(ऋषि प्रसाद)
(ऋषि प्रसाद)
Tuesday 17 January 2012
153_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
तुम्हारे स्वरूप के भय से चाँद-सितारे भागते हैं, हवाएँ बहती हैं, मेघ वर्षा करते हैं, बिजलियाँ चमकती हैं, सूरज रात और दिन बनाता है, ऋतुएँ समय पर अपना रंग बदलती हैं। उस आत्मा को छोड़कर औरों से कब तक दोस्ती करोगे? अपने घर को छोड़कर औरों के घर में कब तक रहोगे? अपने पिया को छोड़कर औरों से कब तक मिलते रहोगे....?
Pujya asharam ji bapu
152_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
अपनी पूरी शक्ति लगाओ। पूरा जीवन दाँव पर लगाकर भी भगवद राज्य में पहुँच जाओगे तो फिर तुम्हारे लिए कोई सिद्धि असाध्य नहीं रहेगी, कुछ अप्राप्य नहीं रहेगा, दुर्लभ नहीं रहेगा। उसके सिवाय सिर पटक-पटककर कुछ भी बहुमूल्य पदार्थ या ध्येय पा लिया फिर भी अन्त में रोते ही रहोगे। यहाँ से जाओगे तब पछताते ही जाओगे। हाथ कुछ भी नहीं लगेगा। इसलिए अपनी बुद्धि को ठीक तत्त्व की पहचान में लगाओ।"
Pujya asharam ji bapu
Pujya asharam ji bapu
Monday 16 January 2012
149_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
हम अपने वास्तविक स्वरूप, अपनी असीम महिमा को नहीं जानते। नहीं तो मजाल है कि जगत के सारे लोग और तैंतीस करोड़ देवता भी मिलकर हमें दुःखी करना चाहें और हम दुःखी हो जायें ! जब हम ही भीतर से सुख अथवा दुःख को स्वीकृति देते हैं तभी सुख अथवा दुःख हम को प्रभावित करते हैं। सदैव प्रसन्न रहना ईश्वर की सबसे बड़ी भक्ति है।
Pujya asharam ji bapu
Pujya asharam ji bapu
148_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
जागो.... उठो.... अपने भीतर सोये हुए निश्चयबल को जगाओ सर्वदेश, सर्वकाल में सर्वोत्तम आत्मबल को अर्जित करो। आत्मा मे अथाह सामर्थ्य है। अपने को दीन-हीन मान बैठे तो विश्व में ऐसी कोई सत्ता नहीं जो तुम्हें ऊपर उठा सके। अपने आत्मस्वरूप में प्रतिष्ठित हो गये तो त्रिलोकी में ऐसी कोई हस्ती नहीं जो तुम्हें दबा सके।
Pujya asharam ji bapu
Pujya asharam ji bapu
147_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
कोई आपका अपमान या निन्दा करे तो परवाह मत करो। ईश्वर को धन्यवाद दो कि तुम्हारा देहाध्यास तोड़ने के लिए उसने उसे ऐसा करने के लिए प्रेरित किया है। अपमान से खिन्न मत बनो बल्कि उस अवसर को साधना बना लो। अपमान या निन्दा करने वाले आपका जितना हित करते हैं, उतना प्रशंसक नहीं करते – यह सदैव याद रखो।
Pujya asharam ji bapu
Pujya asharam ji bapu
Sunday 15 January 2012
146_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
मनसश्चेन्द्रियाणां च ह्यैक्राग्यं परमं तपः।
तज्जयः सर्व धर्मेभ्यः स धर्मः पर उच्यते।।
'मन और इन्द्रियों की एकाग्रता ही परम तप है। उनका जय सब धर्मों से महान है।'
(श्रीमद् आद्य शंकराचार्य)
तपः सु सर्वेषु एकाग्रता परं तपः।
तमाम प्रकार के धर्मों का अनुष्ठान करने से भी एकाग्रतारूपी धर्म, एकाग्रतारूपी तप बड़ा होता है।Pujya asharam ji bapu :-
143_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
अपने मन में यह दृढ़ संकल्प करके साधनापथ पर आगे बढ़ो कि यह मेरा दुर्लभ शरीर न स्त्री-बच्चों के लिए है, न दुकान-मकान के लिए है और न ही ऐसी अन्य तुच्छ चीजों के संग्रह करने के लिए है। यह दुर्लभ शरीर आत्म ज्ञान प्राप्त करने के लिए है। मजाल है कि अन्य लोग इसके समय और सामर्थ्य को चूस लें और मैं अपने परम लक्ष्य आत्म-साक्षात्कार से वंचित रह जाऊँ? बाहर के नाते-रिश्तों को, बाहर के सांसारिक व्यवहार को उतना ही महत्त्व दो जहाँ तक कि वे साधना के मार्ग में विघ्न न बनें। साधना मेरा प्रमुख कर्त्तव्य है, बाकी सब कार्य गौण हैं – इस दृढ़ भावना के साथ अपने पथ पर बढ़ते जाओ।
Pujya asharam ji bapu
Pujya asharam ji bapu
Saturday 14 January 2012
142_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU
ईश्वरः सर्वभूतानां हृदयेशेऽर्जुन तिष्ठति....
ईश्वर तो सर्वत्र है। उसको पाने की इच्छा रखने वाला दुर्लभ है। ईश्वर-प्राप्ति का मार्ग दिखानेवाले महापुरुषों का मिलना दुर्लभ है। ईश्वर दुर्लभ नहीं है। वह तो सर्वत्र है, सदा है। ईश्वर सुलभ है।
तस्याहं सुलभः पार्थ...।
'मैं तो सुलभ हूँ लेकिन मेरा साक्षात्कार कराने वाले महात्मा दुर्लभ हैं।'
बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः।।
"बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में तत्त्वज्ञान को प्राप्त पुरुष, सब कुछ वासुदेव ही है – इस प्रकार मुझको भजता है, वह महात्मा अत्यन्त दुर्लभ है।'
(भगवद् गीताः 7.19)Pujya asharam ji bapu
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