Sunday 12 February 2012

220_THOUGHTS AND QUOTES GIVEN BY PUJYA ASHARAM JI BAPU

यस्त्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानवः ।
आत्मन्येव च संतुष्टस्तस्य कार्यं न विद्यते ।।
'जो मनुष्य आत्मा में ही रमण करने वाला और आत्मा में ही तृप्त तथा आत्मा में ही संतुष्ट हो, उसके लिए कोई कर्त्तव्य नहीं है।'
(भगवद् गीताः ३-१७)

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